शनिवार, 18 अगस्त 2012

नेताओं का कोयला प्रेम

राजनीतिक गलियारे में उस समय भूकंप आ गया जब देश की संवैधानिक जांच एजेंसी कैग ने एक और घोटालों के महा-घोटाले का सच संसद में रखा...जाहिर है जब बड़ा घोटाला हुआ है तो सत्ता-पक्ष और विपक्ष में  तना-तनी  चलना लाज़मी है , और हो क्यों न आखिर अकेले देश के कोयले को बेचकर सिर्फ सत्ता पक्ष ही थोड़े अपने मुंह काला करवाना चाहेगी बाकि दल भी तो बहते हुए काले  कोयला में अपना मुंह धोना चाहेंगे ....अब ये तो बड़ा गड़बड़ हुआ की अकेले एक सरकार  के महकमे ने देश को 1लाख़ 86 हजार  करोड़ का स्वंत्रता दिवस के  
उपलक्ष्य में एक तोहफ़ा दिया है ...शायद  अन्ना और उनकी टीम ने जो भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे वो अब सब सही साबित होने लगे है...जहाँ तक मुझे याद है जब टीम अन्ना ने पहली बार प्रधानमंत्री  पर घोटालों का आरोप लगाया था उस समय प्रधानमंत्री ने कहा था की अगर साबित हुआ तो मैं  राजनीती से  संन्यास ले लूँगा! वैसे भी आपके लिए बेहद जरुरी हो गया है और अगर नहीं ले सकते  है तो  देश मैं अभी कितने घोटाले होने बाकि है इसी का जवाब दे दीजिये  ? कल कांग्रेस के एक प्रवक्ता प्रेस-कांफ्रेंस में  कहते है की "कैग " को "जीरो " लगाने की आदत हो गयी है पर अब सवाल ये उठता है की खुद आप ही अब संवैधानिक कार्य-शैली पर अगर प्रश्न उठाएंगे तो आम इंसान किस पर यकीन करे। क्यूंकि आप न तो अब इतने भरोसे के लायक रहे और न देश की जनता अब इतनी सामर्थ्य है की वो अपना खून और आपको पीने दे तो बयानबाजी  बंद करके नैतिकता के आधार पर पद की गरिमा का ख्याल करते हुए अपने अपने इस्तीफे दस जनपथ में पेश कर दीजिये वैसे भी राम जी ने तो 14 साल का बनवास काटा  था पर अगर इस देश की गरीब जनता का  गुस्सा अगर जाग गया तो शायद ही आपका सत्ता का बनवास कभी पूरा हो नहीं  पाए....देश में  मेहंगाई कमर तोड़ रही है और आप है की जनाब कोयलों में हीरे की तरह पैसे निकल रहे है...और स्वतंत्रता दिवस पर भी हवाई-किले से हवाई -भाषण देते है की जल्द ख़त्म होगी महंगाई ..भाई इस ताबड़ तोड़ महंगाई में  जिस ताबड़ तोड़ ढंग से सरकार ने अपनी कमाई की है उससे तो यही लगता है की भ्रष्ट्राचार के युग में  हम 4जी से भी तेज गति से घोटालों पर घोटाले कर रहे है ...और यही हाल रहा तो कांग्रेस की दुआ से भारत को भ्रष्ट्राचार में प्रथम स्थान के साथ  स्वर्ण पदक तो जरुर हासिल होंगे...देश ने अभी अभी तो स्वंत्रता दिवस मनाया है और पिछले 65 साल में हुए राजनितिक परिवर्तनों को तो सामाजिक परिवर्तनों को आर्थिक हो या फिर जतिगात मुद्दे हो इनसब बदलाव के बारे सोच रही थी की आपने वो भी न करने दिया और आम इंसान पर अब और भोज दाल दिया की 1लाख 86 हज़ार करोड़ के घोटाले को याद रखे।वैसे मैं दाद दूंगा कांग्रेस के नेतृत्व की क्यूंकि उसे पता है देश की भोली -भाली जनता हर बार भूल जाती है पर इस बार , ए .राजा , सुरेश कलमाड़ी, प्रफ़ुल पटेल तो खुद कई और  बड़े नेता भी है  जिन्होंने जमकर भ्रष्टाचार  का खेल खेला है और अब भी बिना किसी दवाब के पदों पर बरकरार है ! बड़ा आश्चर्य होता है की हम स्वंत्रता दिवस क्यों मानते है और इनमे से तो कई भ्रष्टाचारी नेता खुद राष्ट्र -धव्ज  फ़हरा रहे होते है अब समझ में  आया की आज़ादी तो अंग्रेजो से मिली पर आज़ाद तो हम अब तक नही हुए वो वक़्त था गरीब लगान भरकर जुल्मो का शिकार हो रहा था पर अभी आम आदमी अपनी मेहनत  की कमाई टैक्स भरकर कसाब और अफज़ल गुरु के खाने के लिए और उनकी सुरक्षा के लिए दे रहा है भले देश सुरक्षित हो या न हो. और बचे पैसे देश के उन नेताओ के है जिनकी मेहनत ये थी की उन्हें जनता के विश्वास को जीतकर उससे देश को कंगाल करने में सहयोग देना है ...
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मंगलवार, 1 मई 2012

मजदूर दिवस...मज़ाक मजदूर का या व्यवस्था का?

मजदूर --समाज का वो अभिन्न अंग जिसके बिना समाज अधुरा है आज मजदूर दिवस है और देश के ज्यादातर मजदूरो को इसका मतलब भी नहीं पता होगा और न ही वो जानना चाहेंगे क्यूंकि उनके पास सिर्फ और सिर्फ एक काम है अपने  खून पसीने से अपना और अपने घर वालो का पेट भरना पर मजे की बात ये है की हमारी सरकार आज के दिन भी राजनीति करने से बाज नहीं आती है और आज के दिन  भी नए नए खोखले  और झूठे वादे किये जायेंगे इन मजदूरों के लिए पर वो सिर्फ और सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जायेंगे...आज जब घर बनते है तब ये मजदूर बड़े ही खुशियों के साथ उसमे अपनी पूरी मेहनत बिखेर देते है ताकि हमारा और आपका सपना सच हो जाये पर आज तक उन मजदूरो का अपना सर छुपाने के लिए कोई स्थायी ठिकाना नहीं है पर इसके बाद भी वो खुश है और बिना शिकायत और अपेक्षाओं के वो एक एक करके नए नए घरो के निर्माण में अपना खून पसीना बहा रहे है ...ठीक इसी तरह एक किसान सुबह से उठ कर अपने खेतो में मेहनत करने में जुट जाता है जिसकी असली मेहनत के कारण पूरा देश खाना खा पा रहा है पर क्या पता है की उस किसान को खेती करने के दौरान कितनी मेहनत और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है हालत इस कदर हो जाते है की कई दफा खुद दुसरो के लिए अनाज की उपज करने वाले  इस  मेहनती किसान के पूरे परिवार को भूखे  पेट सोना पड़ता है ..इसके बाद भी वो किसान खून पसीना लगातार खेतो में बहाता रहता है ...कई बार उस किसान की फसल ज्यादा बारिशो  के कारण बर्बाद हो जाती है या फिर सुखा पड़ने के कारण तब भी वो किसान मेहनत करके आपका और हमारा पेट भर रहा है ...ठीक इसी तरह पेट पलने के लिए अपने घरो से दूर जाकर शहर में रिक्शा चलाने वाले रिक्शा चालको का भी हाल यही है वो इंसान अपनी मेहनत से हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाता है और उसके बाद पैसे बचा बचा कर अपने और अपने परिवार का पालन पोषण करता है...अब बात करते है आधुनिक भारत की जहाँ पर इन मजदूरो की उनके गरीब होने के कारण सजा भुगतनी पड़ती है ...जो मजदूर कड़ी धुप में मेहनत करके लोगो का घर बनाने का काम करता है उसे प्रतिदिन मेहनताना के रूप में १०० या १२०  रुपये मिलते है जिसमे से कुछ पैसे ठेकेदार खा लेते है ...और उस मजदूर के हिस्से में गालियाँ  और मारपीट आ जाता है ...ठीक इसी तरह किसान का भी हाल यही है उसकी मेहनत से उगाई गयी फसल दलाल के हाथ चली जाती है और दलाल मन माफिक भाव से उस धान को बाज़ार में बेचता है और किसान के हिस्से उसकी मेहनत से भी कम की कमाई आती है पानी मांगने पर किसानो को डंडे मिलते है सरकारी सब्सीडी के नाम पर उन्हें धोके मिलते है जिस देश को कृषि प्रधान देश कहते है आज उसी देश के किसान भुखमरी  और आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर है! ठीक इस प्रकार रिक्शा चालको  का भी हाल यही है वो धुप बरसात ठण्ड में मुसाफिरों को उनके मंजिलो तक पहुंचाते है बदले में उन्हें आधा भाड़ा मिलता है और नहीं तो जम कर गालियाँ सुनाई जाती है ...हद तो तब हो जाता है जब एक अमीर इंसान लगातार गरीबो का पैसा खाने लगता है पर इनसब के बाद भी वो रिक्शाचालक कुछ बोल नहीं सकता और कुछ कर नहीं सकता क्यूंकि उसके माथे पर  गरीबी का तमगा जो लगा हुआ है ...सड़क पर सो रहा होता है तो समाज का बड़ा तबका उनपर गाड़ी चढ़ा  देता है पानी मांगता है तो लाठियां मिलती है अपना हक मांगता है तो पुलिस थाने  ले जाती है अमीरों का पैरो के तले उसे हमेशा दबना ही होता है इसके बाद भी खुशियों के साथ अपनी गरीबी भरी जिंदगी में मस्ती से जी रहा होता है ...अब सोचने वाली बात ये है की क्या गरीब वो है या हम है अनपढ़ वो है या हम है ? हमारे देश में गरीब कम से कम अपने बच्चे का खून नहीं कर रहा है जैसा की हाई क्लास सोसाइटी में अपनी इज्ज़त के खातिर किया जा रहा है ! ये मजदूर भ्रूण हत्या नहीं कर रहे है जैसी की हाई क्लास और मीडिल क्लास सोसाइटी के  ज्यादातर लोग करते है ...आज वो इस भीड़ और दिखावटी दुनिया से बहुत दूर जी रहे है पर उनके अन्दर संतुष्टता की लकीरें साफ़ दिखती है उनके अन्दर की इंसानियत साफ़ झलकती है और तो और तो और उनके अन्दर मजहब जाती धर्म से न कोई लेना है न कोई देना है पर ये मजदूर हम मीडिल क्लास और अपर क्लास सोसाइटी से ज्यादा पढ़े लिखे और समझदार है !



सोमवार, 26 मार्च 2012

कांग्रेस से दूर होती ममता...

बुरे वक़्त में अच्छे अच्छे साथ छोड़ देते है इसका सबसे बड़ा उदारहण कांग्रेस ओर त्रिमूल कांग्रेस की दोस्ती में दिखने लगा है ..कल तक जो त्रिमूल कांग्रेस केंद्र की य़ू.पी.ए को समर्थन दे रही थी आज वही त्रिमूल कांग्रेस हर समय सरकार से समर्थन वापस लेनी की धमकी देती नज़र आ रही है! जिस हिसाब से ५ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावो में से ३ राज्यों में जो करारी मात कांग्रेस को मिली है उसका असर ये है की अब उसके सहयोगी दल भी कांग्रेस के खिलाफ बगावत करते नज़र आ रहे है !पश्चिम बंगाल की ममता ने वहां पर ३४ सालो से राज कर रहे वामपंथियों को न सिर्फ उजाड़ फेंका बल्कि सत्ता में फिर से वापसी की है और फल सवरूप उन्हें केंद्र के रेल मंत्री के पड़ से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह पर उनके पार्टी के दिनेश त्रिवेदी को नया रेल मंत्री बनाया गया ..इस दौरान ममता ने सरकार को बीच बीच में अपनी पार्टी की और अपनी महत्वता बताती रही और जन-लोकपाल मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथ लिया था ..ठीक इसी प्रकार एन.सी.टी.सी मुद्दे पर भी सरकार को जमकर लताड़ लगायी थी ! औरहद तो तब हो गयी जब ममता ने अपनी दोस्ती की ममता कांग्रेस से एक दम हटाना शुरू कर दिया और फलस्वरूप ५ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावो में इन्होने अपने प्रत्याशियो को मैदान में उतर दिया जो की कांग्रेस के लिए किसी सर दर्द से कम नहीं था भले ही इन विधानसभा चुनावो में त्रिमूल कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन न किया हो पर मणिपुर में त्रिमूल कांग्रेस ही विपक्ष में बैठेगी और कांग्रेस सरकार को चुनौतिया भी देगी!
बहरहाल इन विधानसभा चुनावो में मिली जबरदस्त हार का गम अभी कांग्रेस के गले से उतरा ही नहीं था की य़ू.पी में सपथ-ग्रहण समारोह में और पंजाब के सपथ-ग्रहण समारोह में ममता ने अपने जाने का एलान कर के मानो कांग्रेस के लिए एक और झटका दे दिया बहरहाल बाद में कांग्रेस के ऐतराज पर वो खुद न जाकर अपने प्रति-निधियो को भेज दिया ...और इसी के साथ राजनीती बाज़ार में तीसरे मोर्चे को लेकर और मध्यावधि चुनावो को लेकर सुगबुगाहट काफी तेज़ होती जाग रही है वहीँ दूसरी और केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर दखल देना पड़ा और मीडिया में यहाँ तक सफाई देने की नौबत आ गयी की हमारे पास नम्बर्स है ! ममता और कांग्रेस की लडाई उस समय खुल कर सामने आ गयी जब रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने ममता बनर्जी को बिना बताये ही रेल बजट बढ़ा दिया और रेल मंत्री को य़ू.पी.ऐ का समर्थन मिल रहा था उस दौरना ममता की नाराज़गी का आलम ये था की त्रिवेदी को पद से इस्तीफा देना पड़ गया बाद में कल मुकुल राय को रेल मंत्री बनाया गया जिन्हें प्रधानमंत्री ने एक बार पहले ही रिजेक्ट किये जा चुके थे पर मानो ममता के आगे खुद य़ू.पी.ऐ भी बेबस नज़र आ रहा है ...अब देखना तो यही होगा की आखिर कब तक बची-कुची ममता पूरी तरह से कांग्रेस से अपनी ममता हटाएँगी?



बुधवार, 7 मार्च 2012

राज्य के राजकुमार के आगे हारे केंद्र के युवराज...


लाल टोपी ओर साइकिल से राज्य में सत्ता की वापसी के कारवां की शुरुवात करने वाले अखिलेश यादव ने शायद खुद भी नहीं सोचा होगा की मेहनत का फल इतना मीठा होगा ...अब तक शायद सियासी जगत में युवाओ के नाम पर सिर्फ राजनीति होती चली आ रही थी पर मानो अखिलेश ने इस मर्तबा कुछ कर दिखने की थान ली थी ...तभी तो जहाँ लगातार अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान की लडाई लड़ रही समाजवादी पार्टी को न सिर्फ इस युवा ने एक नयी जान दी है बल्कि बतौर एक अच्छे पुत्र होते हुए उन्होंने अपने पिता को पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सियासत भी दे डाली! इस सियासी जंग में अखिलेश ने जिस हिसाब से शालीनता और गंभीरता के साथ जनता के बीच जाने के निर्णायक फैसले लिए वो कहीं न कहीं सपा के वोटो में जरुर इजाफा किये थे...वहीँ केंद्र के युवराज को लेकर मानो सारा कांग्रेसी खेमे ने शाम दाम दंड भेद अख्तियार कर लिया हो और राहुल ने भी जमकर नए नए पैंतरे अपनाये युवाओ को रिझाने के लिए पर शायद जनता को उनपर उतना यकीन नहीं हो सका जितना जनता ने अखिलेश पर किया...लगतार जिस हिसाब से बसपा और भाजपा और कांग्रेसी खेमो से समाजवादी पार्टी पर हमले हो रहे थे और जिस हिसाब से डिम्पल यादव का अपने गृह क्षेत्र में करारी हार हुयी थी उसके बाद भी मानो अखिलेश के हौसले कम नहीं हुए और ये युवा अपने पार्टी कार्यकर्ताओ के साथ लाल टोपी और साइकिल के साथ जनता के बीचो बीच पहुँच कर बता दिया की सिर्फ बोलने से नहीं बल्कि करने से वोते मिलता है! वहीँ डी.पी यादव जैसे अपराधियों को लेकर सख्त तेवर अख्तियार करना अखिलेश को कहीं न कहीं जनता का और विश्वास कायम करने जैसे था! इस विधान सभा चुनावो के दौरान राहुल गाँधी ने जिस हिसाब से कभी दलित के यहं रुक कर खाना खाया या फिर मंच पर एंग्री नेता के रूप में अपनी छवि बनायीं परन्तु इन सब के बाद भी जनता के बीच में वो पकड़ बनाने में नाकामयाब हुए...आलम ये था की राहुल गाँधी के क्षेत्र अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस एक सीट तक के लिए तरस गयी! हमेसा हसमुख स्वाभाव और विनम्रता के साथ राजनीति की सीढियों पर चडाई कर रहे अखिलेश ने खुद भी कभी अपनी तुलना राहुल गाँधी के साथ नहीं की ...जिस हिसाब से २२४ सितो के साथ सपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार में वापसी की है खुद मुलायम ने अपने ४० साल की राजनीति में इस तरह का रिकॉर्ड तोड़ बहुमत नहीं पाया था !अखिलेश ने अपनी लोकप्रियता और भी उस दिन बढ़ा ली जब उनसे पूछा गया की क्या आप सत्ता में आयेंगे तो आप मायावती और हाथियों की मूर्तियों को गिरवा देंगे तो इस पर जिस हिसाब से अखिलेश ने जवाब दिया की वो बदले की नहीं बदलाव की राजनीति करेंगे वो काफी हद तक युवाओ के सोच की नयी रूप रेख की सबसे बड़ी मिशाल थी! बहरहाल इस समय अखिलेश के लिए सबसे बड़ा चुनौती ये है की राज्य को एक नया रूप देना और कानून व्यवस्था को बरकरार बनाये रखना है! वैसे भी अभी सरकार सपथ भी नहीं ली है की समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओ ने कानून को अपने हाथो में लिया और कहीं न कहीं अखिलेश के लिए पहले ही दिन काफी चुनौती भरा दे दिया है अब देखना ये है की क्या अखिलेश युवाओ के लिए और सूबे की जनता के लिए विश्वास की बुनियाद पर खरे उतरते है या नहीं ?

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

क्या वक़्त आ गया है बड़े बदलाव का ?

टीम अन्ना के महत्वपूर्ण सदस्य अरविन्द केजरीवाल न पिछले दिनों जो भी बयान दिया है उसके बाद जिस हिसाब से सारे राजनीतिक दलों में भूचाल सी आई है उसको देखते हुए ये प्रश्न पूछना गलत नहीं होगा की क्या अब वो वक़्त आ गया है जब देश को एक महत्वपूर्ण बदलाव की जरुरत है? केजरीवाल का बयान कुछ मायनो में गलत था तो कुछ मायनो में शायद सही भी था ! आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा भले ही भ्रष्ट्राचार हो और कला धन हो पर कहीं न कहें इन दोनों की जड़े राजनीतिक स्तर तक जुडी है और यह जड़े शायद आज आम आदमी को इस तरह अपने आप में सिमेट सी ली है की आज भ्रष्ट्राचार के बिना शायद आम आदमी का कोई काम हो सके! इसका सबसे बड़ा उदाहरण सलमान खुर्सीद और चुनाव आयोग के बीच चली जंग जो की राष्ट्रपति तक पहुँच गया और मामला ठंडा पड़ा भी नहीं था की बेनी प्रसाद ने भी आयोग की चुनौती दे डाली! आज राजनीतिक दलों में जीत की इस कदर प्यास है की उन्हें चुनाव आयोग के दिशा- निर्देश भी नागवार गुजरने लगे है ! तभी तो आय दिन कोई न कोई नेता सरकारी संस्थाओ का खुले आम चिर हरण कर रहा है! आज भी संसद में कई दागी ऐसे बैठे है जिनपर हत्या, हत्या का प्रयास , धोका-धडी जैसे गंभीर मामले है इसके बाद भी वो देश के लोकतंत्र के मंदिर के पुजारी बन कर बैठे है !चनावो के दौरान जिस हिसाब से ताबड-तोड़ रुपये मिलने के मामले सामने आये उससे कहीं न कहीं आम जनता के मन में भी यह प्रश्न जरुर आया होगा की कहीं न कहीं फिर राजनीतिक मंदी में आज जनता के विश्वास और मतों का सौदा लगने वाला था जिसे चुनाव आयोग न काफी हद तक रोकने में कायम रहा ! आज कहीं न कहीं सिर्फ केजरीवाल ही नहीं बल्कि हर आम इन्सान के अन्दर इसे दागी नेताओ के प्रति यही सोच उत्पन्न हो रही है ! परन्तु हमारे देश के राजनेता भी मानो अदि से हो गए हो तभी तो फिर से उन्हें अपनी मान मर्यादा का सवाल आ गया और फिर से अपना विशेषाधिकार का प्रयोग कर केजरीवाल से माफ़ी मंगवाएंगे! पर शायद यही नेता थे जिन्होंने कुर्सी की लालच में संसद में नोटों को लहराया था तो वहीँ विधान सबह में क्या राज्यों में एक दुसरे हाथ उठाये थे ! अभी हाल के दिन में ही कर्नाटक के ३ मंत्रियो को विधाभा अमिन अश्लील पिक्चर देखते हुए पाया गया था! अब ये हमारे साफ़ सुथरे अवेम स्वछ छवि वाले नेता है जो खुद आपस में भिड़े रहते है एक दुसरे पर मानो कसमे खा राखी है कीचड़ उछालने की ! पर अगर यही काम आम जनता करे तो इन्हें बुरा लग जाता है ! अब समय आ गया है की या तो ऐसे नेताओ के प्रति कोई मजबूत कानून बने और सख्त सजा मिले नहीं तो वो दिन दूर नही है जब धीरे धीरे सारे नेताओ के प्रति आम जनता का एक ही नज़रिया बन जाये....

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

आपा खोती माया...


नेता किसी के नहीं होते है ये तो हमने सुना था और देख रहे है ! पर सत्ता की लालच में भूके बैठे इन नेताओ ने अपनी मान मर्यादा अपनी संस्कृति सभ्यता समेत संस्कार सब कुछ ताक पर रख दिए है ! वैसे में विश्वास के साथ तो नही कह सकता की इनमे से एक भी लक्षण नेताओ में मौजूद है! वरना शायद आज जिस हिसाब से वो सियासत के इस जंग में अपने अपने विरोधियो पर कीचड़ उचल रहे है वो कहीं न कहीं इन नेताओ को आम इंसान और जात पात से काफी अलग और खुद मे अनोखा सा बनता है ! ठीक यही हाल उत्तर प्रदेश की दलित की बिटिया का है जिन्होंने दलित के नाम पर सियासत शुरू किया और काफी शाम दम दंड भेद के बाद सत्ता की कुर्सी तक पहुँच पाई! पर वो सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि कहीं न कहीं वो एक महिला भी है जिन्हें अपने राज्य की महिलओं की सुरक्षा और उनकी संवेदनाओ का भी ख्याल रखना चाहिए था पर शायद वर्तमान समय में मापदंड विपरीत दिशा में जा रहे है खुद मायावती के माननीयो पर महिलओं के साथ यौन उत्पीड़न समेत बलात्कार तक के आरोप लगे है ! खुद मायावती के पास इतना वक़्त नहीं है की वो महिलो के दुःख को सुन सके तभी तो वो कई मर्तबा उन महिलो के दर्द को अनसुना समझ कर आगे बढ़ लेती है! पर इस बार जो किया है उससे कहीं न कहीं उनकी हार का डर या फिर उनकी सियासी जंग में उनकी हताशा साफ़ साफ़ झलक रही है ! तभी तो गोरखपुर में चनावी सभा को संबोधित करने आई मुख्यमंत्री ने वो कह डाला जो की शायद कल्पना से परे था! हुआ य़ू की जब मुख्यमंत्री मंच पर जा रही थी तब एक महिला अपने बेटे की हत्या की फ़रियाद लेकर मायावती के पास मिलने पहुंची पर शायद वो महिल भूल गयी थी की भले ही ये महिला मुख्यमंत्री है तो क्या हुआ असली जात तो नेताओ की है न इनकी भी आखिर अपना रंग कैसे न दिखाती ?और फिर वहीँ हुआ जो हमेसा की तरह आम जनता के साथ मायावती के कार्यकाल में हुआ था वहां मौजूद पुलिस वालो ने महिला को खिंचा कर सभा से दूर किया ! इन सब के बीच भी मायावती के मन में महिला होने के नाते भी दया नहीं जग पाई और मंच पर इस विषय को भी चनावी रूप देना उचित समझा और यहाँ तक कह डाला की ये विरोधियो के पालतू कुत्ते है? काश की मायावती के नादर एक अम्हिला के रूप में माता जग पति क्यूंकि जिस महिला को लेकर उन्होंने ये टिप्पणी की है उस महिला ने अपना बेटा खोया है और आपके मतहतो ने उस महिला के बेटे के मौत के बाद भी कोई करवाई नहीं किये थे! उर आपने जख्मो पर दावा लगाने के बजाये और जख्म दे रही है ? क्या दलित की बेटी का दिल नहीं है या फिर इस दलित की बेटी के अंदर की ममता मिट चुकी है ? अगर आपको जनता से मिलने में इतनी दिक्कत और परेशानी है तो आप मत मिलो वैसे भी वोट तो महिलाएं आपको दे ही देंगी क्यूंकि अब भी उनको विश्वास है पर आप और आपके माननीयो ने जिस हिसाब से काम किया है क्या आप उससे खुश है ?राजनीती की चाह में इतनी लालची मत बनिए की कल जिस महिलओं ने आपको सियासत की कुर्सी तक पहुँचाया है अब वही आपसे आपकी कुर्सी भी छीन ले इस लिए अभी भी ६ चरणों के चुनाव बाकि है और आपको भी अच्छी तरह पता है की जनता ही जनार्दन है तो बंद कीजिये अपनी तानाशाही और वक़्त रहते महिलो का क़द्र करना शिख लीजिये क्यूंकि आज तक महिलओं से कोई जीत नहीं पाया है तो आप और आपके माननीयो का क्या होगा सोचा है कभी?

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

लोकतंत्र की जड़ो को चोट देने वाले कौन ?


जब से ५ राज्यों के विधान सभा चुनावो की तारीखें घोषित हुई है तब से ज्यादातर राजनीतिक दलों ने जीत हासिल करने के लिए नए नए चनावी वादों की झड़ी सी लगा दी है..बहरहाल इन वादों को महज़ एक प्रलोभन से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है क्यूंकि कहीं न कहीं इन सफेदपोशो ने लोकतंत्र को नोट-तंत्र में बदलने की हर वो सार्थक कोशिश की है जितनी सार्थक कोशिश उन्होंने देश को लूटने में और नए नए घोटाले करने मे की है...पर इन सब के बीच एक ही सवाल खड़ा होता है की आखिर इतना सब कुछ जानते हुए भी जनता जागरूक क्यों नहीं होना चाहती है? पिछले दिनों २६ जनवरी को देश की राष्ट्रपति ने देश के नाम सन्देश देते समय ये कहा की लोकतंत्र का पेड़ इतना न हिलाया जाये की लोकतंत्र की जड़े कमजोर हो जाये ...उनका ये बयां किसके लिए था और क्यों था ये हम और आप शायद अच्छे तरीके से जानते है! पर शायद महामहिम को ये नहीं पता था की आज देश की लोकतंत्र की जड़े और कोई नहीं बल्कि सफेदपोशो ने दिमक की तरह खोखले कर दी है ! आज देश मे घोटाले विकास की दर से ज्यादा बढ़ गए है ! हर राज्यों मे रेस सी लग गयी है की कौन कितना ज्यादा शोषण और गबन कर सकता है? आज हालात ये हो गए है की देश में संविधान बनाने वाले ही खुद संविधान का मजाक बना रहे है..पेट भरने के लिए एक रोटी चुराने वाले पर पुलिस तुरंत करवाई करती है पर देश में दो हज़ार करोड़ रूपये खाने वाला मंत्री भी ठाठ से जेल की हवा खा कर आता है मानो वो वहां मेहमान के रूप मे गया हो ! यहीं नेता चनावो मे जीतने के लिए जाति-सांप्रदायिक और धर्म की राजनीती कर के वोट बैंकिंग की सियासत करते है और आम जनता आपस में लड़कर लाशें बिछा देती है ! अभी हाल में ही एक युवा नेता को सियासत की भूख इस तरह लगी की उन्हें अपनी मेहनत और खून पसीने की कमाई करने वाले मजदूरो की तुलना भीकारीयो से कर दिया ...जबकि वास्तविकता ये है की उनके सुरक्षा के कारणों से आम जनता तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता तो भीकारी उनके पास कहाँ से आये ? एक दल ने तो बकायदे चुनावो में जीतने के लिए यहाँ तक ऐलान कर दिया की उनकी सरकार आती है तो बलात्कार पीडितो को सरकारी नौकरी दिया जायेगा अब उनका ये कथन से पीड़ितो का भला हो या न हो पर अपराधियों के हौसले और बुलंद होंगे! अब जब अंत समय आया चुनावो को नजदीक देख सारे दलों ने एक दुसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाने शुरू कर दिए है ...और इन सब के बीच इन पूरे दलों मे किसी के भी चुनावी घोषणा पत्र में भ्रष्ट्राचार से निजात मिटाने वाला न कोई बिल था और न ही कोई भरोसा था ...बस सब दलों ने चुनावी वादों के साथ मानो मतदाताओ को खरीदने मे जुट गए है ! यु.पी के एक केंद्रीय मंत्री ने मीडिया मे बयां देते है की अगर टीम अन्ना उनके क्षेत्र मे आये तब उन्हें बताऊंगा...तो वहीँ दूसरी और बिहार के स्वास्थ मंत्री तो सीधे सीधे तालिबानी तेवर अख्तियार कर लिए हो ओर हड़ताल करने वालो को यहं तक हिदायत दे डाला की अगर कोई अनशन करता है तो उसके हाथ कटवाने भी हमे आते है..दलित के नाम पर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे वाली नेता ने भी भले दलितों का विकास किया हो या न किया हो? पर अपनी मूर्तियों के साथ उनका हाथियों के मूर्ति प्रेम को भी हमने देखा ! देश मे चारा घोटाला करने वाले मंत्री ने तो साफ़ तौर पर यहाँ तक कह दिया की लोकपाल बिल अगर आता है तो ये एक तरह हम नेताओ के लिए गला घोटने के बराबर है और इन्ही के राज्यसभा सदस्य ने भरे राज्यसभा में लोकपाल बिल फाड़ कर संविधान और संसद का चीरहरण किया था...वहीँ देश मे अब भी एक ऐसी पार्टी है जिसको चुनाव करीब आते है राम मंदिर की याद आती है और इसी के साथ मजहब के नाम पर सियासत शुरू करती है.....! महामहिम ने तो ये बात बड़े हल्के मे कह दिया ! पर अगर सही मायनो की बात की जाये तो लोकतंत्र की जड़े न कोई टीम अन्ना हिला रही है और न ही कोई आम जनता हिला रही है जड़ो को तो आपके सफेदपोशो ने खोखली कर दी ..और अगर आपको लगता है की आम जनता अगर अपनी मांग को लेकर सड़क पर उतरती है या सरकार पर दवाव बनाती है तो आप कृपया करके संविधान का संसोधन कर दीजिये और लोगो से लोकतंत्र वापस ले लीजिये क्यूंकि ये लोकतंत्र सिर्फ सफेदपोशो के लिए है न की आम जनता के लिए ...आज भी ज्यदातर लोग हमारे देश मे भूके पेट सोते है सिर्फ आपके सफेदपोशो के कारण ! आम जनता के अन्दर इतनी समझदारी तो है की संविधान की क़द्र कर रही है और एहमियत तो समझ रही है! वो आपके लोकतंत्र का पेड़ क्या हिलाएंगे ?

फोटो का श्रेय -kapilarambam.blogspot.com