गुरुवार, 10 नवंबर 2011

सियासी कुश्ती!!!!!


उत्तर प्रदेश मैं आगामी विधानसभा चुनावो के निकट आते ही प्रदेश मैं राजनीती गलियारे मैं शोर गुल अचानक से बढ़ गयी है....इस सियासी दंगल मैं हर पार्टी अपने आप को नए नए मुद्दों के साथ भुनाने मैं लग गए है, पर सबसे ज्यादा असर अगर किसी पार्टी को हो रहा है तो वो है बसपा क्यूंकि जिस हिसाब से सूबे की मुखिया न लगातार कई विधायको के साथ कई नेताओ के पत्ते काटे है ओर इस्तीफे लिए है उसे देख कर तो यही लगता है की मायावती कहीं न कहीं अपनी जनता के बीच खोयी हुयी छवि को फिर से वापस पाना चाहती है या फिर सत्ता का सुख फिर से हतियाना चाहती है....क्यूंकि पिछले दो साल मैं कोई करवाई न करते हुए जिस हीसाब से अपने माननीयो को बढ़ावा दे रही थी ओर जिस हिसाब से दाग दार प्रत्याशियों को पनाह दे रही थी वो एक एक थमता सा नज़र आ रहा है....पर बहार हाल जो भी हो प्रदेश मैं मूर्तियों का निर्माण भी कम हो गया है...ओर तो ओर चुनाव करीब आते है मायावती को एक बार फिर से अल्प संख्यक ओर सवर्णों के आरक्षण की याद सताने लगी ओर फटा फट केंद्र सरकार को चिट्ठियों की झड़ी लगा दी ...बहरहाल इस बीच अपनी पहचान खो रहे समाजवादी पार्टी भी अपने युवा नेता अखिलेश यादव को आगे कर प्रदेश मैं क्रांति -रथ निकल कर जनता का हितेषी ओर जनता के प्रति प्यारा बढ़ा दिया है ओर तो ओर अल्प संख्यको को रिझाने के लिए लगातार नए नए हाथ -कंडे अपनाने मैं लग गए है ...इन्ही बीच केंद्र मैं विपक्ष का हमला झेल रही कांग्रेस ने भी मानो पूरी तैयारी कर रखी हो ओर कांग्रेस के राज कुमार राहुल गाँधी ने एक एक प्रदेश मैं दौरे भी तेज कर दिए हो चाहे वो दलित प्रेम हो या परसौल का दौड़ा हो ...पर राहुल किसानो का नाम तो लोक सभा मैं लिए थे पर अब तक अपेक्षाओ का दंश झेल रहे किसानो के लिए केंद्र मैं रहते हुए भी कोई खास राहत पैकेज नहीं दे पाए ओर न ही किशानो का कर्जा माफ़ करा पाए ...वही सूबे मैं भाजपा भी अपनी कमर कस ली हो ओर प्रधान मंत्री का सपना देख रहे लाल कृष्ण अडवाणी की जन चेतना यात्रा उत्तर परदेश मैं घुसने के साथ ही मानो देश से भ्रस्ताचार मिटा कर ही दम लेंगे ओर कह दिया की भ्रस्ताचार मिटने की सीढ़ी प्रदेश के रास्ते ही होकर जाती है....इन सभी के बीच बचे राजनितिक पार्टियों ने जहाँ प्रदेश के विभाजन की मांग को मुद्दा बनाया है तो वही कुछ दागदार ने तो किंग मेकर बनने के चक्कर मैं खुद की पार्टी ही बना डाली है पर आने वाला वक़्त ही बताएगा की जनता सत्ता की चाभी किसके हाथ मैं देना चाहेगी ओर जनता किसको अपने पलकों पर बैठाएगी ....पर जो भी हो इस सत्ता की चाबी पाने के लिए कड़ी म्हणत कर रहे नेताओ को तो देखकर यही याद आता है की अब सुख दिन बीते रे भईया अब दुःख दिन आयो रे `!!!
पुनीत कुमार
न्यू दिल्ली