बुधवार, 25 जनवरी 2012

अपनों से हारा राष्ट्रीय धव्ज हमारा....


बचा लो मुझे बचा लो मुझे ....एक पल को लगा कोई मुझसे मदद मांग रहा है पर जब पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नहीं था फिर में ज्यों ही अपने कदमो को आगे बढ़ने जा रहा था मुझे फिर से अचानक वही चीखें सुनाई दी इस बार में पीछे मुड़ा तो देखा की सड़क के एक छोर पर हमारे देश का राष्ट्रीय धव्ज अपने रिहाई के लिए तड़प रहा था ...में धीरे धीरे आगे बढ़ा और फिर धव्ज को हाथो से उठाया और पुछा की क्या बात है आज तो देश गणतंत्र दिवस के ६३वे वर्षगांठ की खुशियाँ मना रहा है और तुम्हारी आँखों में आंसू क्यों है क्या तुम खुश नहीं हो ? जवाब में धव्ज ने कहा की अगर तुम्हारी क़द्र सिर्फ एक दिन की जाये तो क्या तुम खुश रहोगे उसके इस जवाब में काफी दर्द था ..उसने आगे कहते हुए कहा की अब मेरी अहेमियत लगातार घटती जा रही है ...पहले हर माँ बाप अपने बच्चे को मेरे बारे में बताते थे और फिर में भी बच्चो के हाथों में जाकर काफी खुश होता था पर अब माँ बाप तो मुझे अपने बच्चो के हाथ में तो क्या मेरे बारे में भी नही बताते है...अब तो तुम मुझे सड़को पर फेंके हुए हाल में देख सकते हो! क्या मुझे कष्ट नहीं होता है ?न जाने क्यों उसकी बातों को सुनकर में स्तब्ध सा रह गया और फिर मैंने पुछा की कुछ भी हो पर आज भी हमारा देश जब क्रिकेट में वर्ल्ड कप जीतता है तो खुशियों में तुम्हे फ़हराया जाता है तो क्या तुम खुश नहीं हो इससे ? तिरंगे ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा की तुम ये क्यों भूल जाते हो की देश के गद्दार नेताओ के मरने पर मुझे शोक में भी झुकाया जाता है तब मुझपर क्या बीतती है तुम्हे क्या पता ...उस वक़्त तो मुझे भी लगता है की में आजाद क्यों हुआ? तभी मैंने पुछा की तुम्हे बुरा किस बात का सबसे ज्यादा लगता है और क्या लगता है की तुम्हारे इस हाल के पीछे आम जनता का हाथ है? अभी मैंने पूरा प्रश्न पुछ भी नहीं पाया था की तिरंगे ने कहा की बिल्कुल आम जनता के कारण ही मेरा हाल ऐसा हुआ है क्यूंकि जनता ने जब से दागियो बलात्कारियो और भ्रष्ट्राचारियो को अपना प्रतिनिधी चुनकर नेता बनाया है तब से वही दरिन्दे मुझे अपने हाथों से फेहराते है तब मुझ पर क्या बीतती है तुम्हे क्या पता? अब न जाने क्यों मुझे ऐसे लगने लगा था की कहीं न कहीं में भी दोषी हूँ तिरंगे के उसके इस हाल के लिए ...तिरंगे ने कहा की मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है बस मुझे भी आज़ादी चाहिए क्यूंकि अब मुझमे वो क्षमता नहीं है की में अपने आँख के आगे भ्रष्ट्राचार होते देखू ओर न ही मुझमे अब इतनी शक्ति है की मैं गद्दारों के मौत पर अपने आप को झुका हुआ देख सकूँ ! मैंने कहा की पर ज्यादातर इंसान तो तुम्हे सीने से लगाते है अपने दिल मैं बसाते है तो फिर तुम क्यों इतने उदास हो इस पर तुरंत तिरंगे ने जवाब दिया की जब विरोध करना होता है तब मुझे जला भी दिया जाता है ...अब तिरंगे ने साफ़ साफ़ शब्दों मैं बोल दिया की इंसान इतने स्वार्थी हो गए हो अगर तुम्हे जरुरत पड़ी तो तुम मुझे भी बेच दोगे ...और तुम इंसानों के अन्दर देश भक्ति सिर्फ एक छलावा है ताकि तुम इंसान अपनों को ही धोका दे सको की तुममे देश भक्ति है पर मैं पिछले ६३ सालो से तुम इंसानों को बदलते हुए देख रहा हूँ सोचता हु की तुम इंसानों मैं अपना आत्मा सम्मान नाम का कोई चीज़ ही नहीं है आज भी ग़ुलामी भरी जिंदगी जी रहे हो ...अब मेरे पास तिरंगे को जवाब देने के लिए कुछ नही था मैंने उससे पुछा की कहाँ छोड़ दू आपको तो इसपर तिरंगे ने नम आँखों से यही कहा की अगर छोड़ना है तो मुझे आज़ादी दिलवा दो ताकि मैं सुकून भरी सांस ले सकूँ क्यूंकि मैं खुली फिजा मैं साँस लेना चाहता हूँ न की इन गद्दारों के हाथों फ़हराए जाना चाहता हूँ ...क्या तुम दिला सकते हो मेरी आज़ादी? उसके प्रश्न का तो जवाब मेरे पास भी नहीं था पर हाँ उसके प्रश्नों ने मेरी आँखें जरुर खोल दी अगर अब भी हमारे अन्दर राष्ट्रीय धव्ज के प्रति कोई भी प्रेम है तो उसके आंसू को हम और आप पोछ सकते है इस गणतंत्र दिवस हमे और आपको सभी को ये संकल्प लेना होगा की हम अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और दागियो को अपना प्रतिनिधी नही बनायेंगे और राष्ट्र धव्ज का अपमान होने से बचायेंगे !!!