सोमवार, 20 जून 2011

हिंदी बचाओ देश बचाओ !!!


आज हम धीरे धीरे विकास की ओर बढ़ रहे है !पर इस विकास के दौड़ मैं हम अपनी राष्ट्रीय भाषा और देश की संस्कृति को लगातार भूलते चले जा रहे है !और अर्थ शास्त्र के अनुशार किसी भी देश को विकास करने के लिए उसे दुसरे देश साथ अच्छे सम्बन्ध और नीतियाँ बना कर चलना होगा ....पर आज हमने दुसरे देशो की सभ्यता और संस्कृति को इस स्तर तक अपना रहे है की आज हम अपनी राष्ट्रीय भाषा को ही सम्मान नहीं दे पा रहे है!!और तो और आज हमारे उच्च वर्ग के लोग तो मानो हिंदी बोलने से शर्मा रहे है क्यूंकि इस भाषा के इस्तेमाल से उनकी छवि और समाज मैं बदनामी जो हो रही है....पर मेरा सवाल यह है की क्या ये उच्च वर्ग के लोग देश द्रोही या गद्दार है या नहीं???पिछले दिनों एक उच्च घराने मैं एक छोटे बच्चे से हिंदी मैं बात क्या कर ली मानो कोई बहुत बड़ी गलती हो गयी उस बच्चे की माँ ने सीधे सीधे यह कह दिया की की आप इससे अभी से ही इंग्लिश मैं बात कीजिये वरना यह अंग्रेजी बोलना नहीं सीख पायेगा !तब मुझे पता चला की हम आजाद तो हो गए पर हमारी सोच आजाद नहीं हुयी है! आज भी हम दुसरे देश की बुरी सभ्यता को तो अपना रहे है पर अच्छी सभ्यता को दरकिनार कर दे रहे है....आखिर क्यूँ???
क्या वो देश विदेश वाले अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ या अपने देश प्रेम के साथ इस तरह की गद्दारी कर रहे है जिस तरह की हम कर रहे है?वो हमारे देश की सभ्यता तथा संकृति को अपना भी रहे है और अच्छा भी समझते है पर वो अपने देश के साथ गद्दारी नहीं कर रहे है !!हम किस हक से काले धन की लडाई लड़ रहे है आखिर वो भी धन तो विदेश मैं जा रहा है जिसके सभ्यता और संस्कृति को हम अपना रहे है...आखिर धन के मामले मैं इतना देश भक्ति क्यों जग गयी ??? कहीं ऐसा तो नहीं की ये हिस्सा हमे या आप को नहीं मिला इसलिए इतना बुरा लग रहा है??और या सिर्फ हमे राष्ट्रीय धन की चिंता है ...आज हम दुसरे देश की सभ्यताओ मैं इस तरह विलीन हो गए है की अपना देश भी हमे बुरा लगने लगा है जब दुसरे देश की ही सभ्यता इतनी प्यारी और अच्छी लगती है तो फिर बढ़िया तो यही है की हम फिर से गुलाम भरी जिंदगी जीने लगे....ये कौन कहता है की दुसरे देश की सभ्यता मत अपनाओ बिलकूल अपनाओ क्यूँकि हर विकशित देश का विकास का सबसे बड़ा मूल मंत्र है ये!! पर इसका यह मतलब नहीं है की हम अपने देश के साथ ही गद्दारी करे ....कोई ये बता सकता है की आज विदेशो मैं ज्यादातर युवा अपने पैरो पर खड़े हो जाते है मात्र १५-१७ के उम्र मैं पर हम १८ साल बाद भी घर वालो पर आश्रित रहते है तब कहाँ चली जाती है सभ्यता और संस्कृति???वो इस देश मैं आते है तो अंग्रेजी मैं ही बात करेंगे वो हिंदी नहीं प्रयोग करेंगे पर अगर हमको विदेश जाना है तो हम महीनो भर से अंग्रेजी सुधारने मैं लग जायेंगे ....अब बतायिए आखिर गद्दार कौन वो या हम ??? हमने अपनी राष्ट्र भाषा का जो अपमान किया है वो क्या किसी देशद्रोह से कम नहीं है? हम तो वो है जो जिस थाली मैं खाते है उसी मैं छेद करते है....अब तो शर्म करे कम से कम जितना अंग्रेजी को अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण भाषा और दुसरे देश की सभ्यता की क़द्र करते है उसकी जगह थोडा से देश के प्रति भी राष्ट्र प्रेम जगा ले!!!जागो भारतीयों जागो अपनी देश की सभ्यता और संस्कृति को गर्व के साथ दुसरे देश मैं भी फैलाओ और राष्ट्र भाषा हिंदी को अपमान होने से बचाओ !!!!
पुनीत कुमार
न्यू दिल्ली

उत्तर प्रदेश या जुर्म प्रदेश ?


जिस देश की महिला राष्ट्रपति हो और उस देश मैं मौजूद राज्य की मुखिया खुद ही महिला हो और उस राज्य मैं महिलाओ के साथ बाल्तकार और छेड़-खानी हो और वहां पर कानून नाम की कोई चीज़ ही न हो तो आप क्या कहेंगे? जी हाँ ऐसा ही कुछ हाल उत्तर प्रदेश मैं महिलाओं के साथ हो रहा है क्यूंकि सूबे मैं अब महिलाएं भी अपने आप को सुरक्षित नहीं मान रही है !आज सबसे ज्यादा खतरा और किसी से नहीं बल्कि सूबे की मुखिया के माननीयो से है...और इतनी घटनाओ के बाद भी प्रदेश सरकर की आंख नहीं खुल रही है.!!पिछले दिनों बी.एस.पी. के ज्यादातर विधायको और पूंछलग्गू नेताओ पर सबसे ज्यादा आरोप लगे है इसके बाद भी कोई कठोर करवाई नहीं की जा रही है !आज प्रदेश की मुखिया इधर सुरक्षा को लेकर प्रेस वार्ता कर रही है उधर इसी दौरान इनके माननीयो के द्वारा ऐसा शर्मसार कर देने वाला कृत्य किया जा रहा है !मायावती जी को शायद दिन मैं भी अपनी जनता को भली भांति सपने दिखाने आता है और झूठा आश्वासन हमेशा उनकी जवान पर है...पिछले दिनों कानपूर दौरे पर जब वो गयी थी तो प्रदेश की जनता ने उनका असली चेहरा देख लिया था की एक महिला होने के नाते वो एक महिला का वो कितना दर्द समझती है!!और वर्तमान समय मैं भी बलात्कार और पुलिस उत्पीडन के मामलो मैं कोई कमी नहीं आ रही है और इतना सब कुछ होने के बाद भी डंके की चोट पर मायावती ये कहते नज़र आ रही है की प्रदेश मैं अब कानून व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है और कोई दिक्कत नहीं है अब! पर कौन समझाए की आपकी पार्टी के कार्य-करता से लेकर ऊपर तक ज्यादातर लोग धन बल के जरिये अपना शासन चला रहे है और प्रदेश मैं जुर्म लगातार बढ़ते जा रहा है !!!और मायावती जी के पास मूर्तियों और स्मारकों को बनवाने से समय मिल पाए तब तो वो प्रदेश के बिकास और कानून व्यवस्था के बारे मैं सोचे...और उनके कार्य काल को देखकर तो यही लगता है की उनकी नियत मैं खोट आ गया है और वो अब वो ये जान चुकी है की उनकी जनता की आँख धीरे धीरे खुल चुकी है इसलिए जो हो रहा है होने दो अब वैसे भी अगले चुनाव का क्या पता सत्ता सुख मिले या न मिल पाए ??? इससे बेहतर तो यही है की जितना खा सके और जितना सरकारी धन बचा सके बचा ले...जनता का क्या है अगली बार कोई और आएगा खून चूसने के लिए पर जो भी आपने सही कहा था और सिद्ध भी कर दिया की "सर्वजन हिताए सर्वजन सुखाये" और शयद आज प्रदेश की जनता भी अब समझ गयी इसका मतलब की "आपका तो हित हो ही गया बहन जी पर जनता आपके साशन मैं पूरी तरह सुख गयी उस तरह से जैसे किसी रेगिस्तान मैं बर्षो से पानी न बर्षा हो" इसे कहते है सत्ता का पॉवर !!
पुनीत कुमार
न्यू दिल्ली

मीडिया का दायित्व ?


बदलते युग के साथ मीडिया ने भी अपने आप को काफी बदला है.पर इस बदलाव के साथ ही मीडिया ने आज अपने दायित्वों को भूलते हुए और अपने सिद्धांतो को बिना परवाह किये हुए वो दिन प्रतिदिन उल जुलूल खबरों को दिखने मैं लग गया है!पर समझ मैं यह नहीं आता की आखिर मीडिया टी.आर.पी। के चक्कर मैं इतना कैसे भटक गया है की आज वो अपने दर्शको को भी गलत खबरों को दिखा कर भटका रहा है !पिछले दिनों जन्तर मन्तर पर जो कुछ भी हुआ शायद वो मीडिया के कार्य शैली को कहीं न कहीं जरुर दिखा दिया....पिछले दिनों ठीक इसी प्रकार धरती पलटने मैं लग गए थे कुछ बड़े न्यूज़ चैनल तो कुछ को खुद भगवन दर्शन दे रहे थे तो कुछ को स्वर्ग और नरक का रास्ता मिल गया था...आखिर कर भगवान भी सोच रहे होंगे की इतना मजबूत लिंक कैसे है इन मीडिया वालो का जो हमारे बारे मैं भी छान बिन कर ले रहे है !खैर भगवान को किसी तरह बक्शा तो अब बाबा जी के पीछे फुल्ली फोकस हो गए जहाँ बिचारे बाबा रामदेव जी काले धन को को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए तो मीडिया ने २४*७ बाबा जी को टेलेकास्ट किया और उसके बाद बाबा जी के साथ जो कुछ भी हुआ वो भी काफी अफ़सोस जनक था पर मीडिया ने तो मानो बाबा जी के प्रति इतना प्यार दिखाया की बाबा जी खुद बा खुद मीडिया को हर जगह बुलाने लगे ...पर जब बाबा जी उनसे धन के बारे मैं पुछा गया और हिसाब माँगा गया तो बाबा जी ने सिर्फ ४ ट्रस्टो का हिसाब देकर बाकि हिसाब देना भूल गए ..पर शायद बाबा जी को यह नहीं पता था की यह भारतीय मीडिया है जब भगवान का पता लगा ली तो आपके धन का भी पता लगा ही लेगी और मीडिया ने लगा भी लिया और भरे प्रेस वार्ता मैं बाबा जी उनसे उनके निजी ३४ कंपनियों के बारे मैं पूछ लिया खैर बाबा जी किसी तरह शांत रहे पर उनके सहयोगी बाल कृष्णन बार बार बुरा मान जाते और मीडिया को आर.टी.आई। के बारे मैं बताकर वहां से जानकारी लेने की सलाह देते थे !पर शायद इस बात के बाद बाबा जी मीडिया से खुश नहीं है ....पर ये बात तो सत्य है की हम और आप भी कहीं न कहीं दोषी है क्यूंकि हम भी उन चीजों को गौर से देखना चाहते है जिसका कोई तर्क नहीं है और मीडिया जब वो दिखता है तो हम आलोचना करते है ...मीडिया ने हर एक जगह पर अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया पर आखिर अकेला वो क्या कर सकता है जब तक हम और आप कुछ अलग न सोचे ???
पुनीत कुमार
न्यू दिल्ली