मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

सोशल नेटवर्किंग के दुश्मन.....


आज जिस हिसाब से केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लेकर जो बयान दिया है वो कहीं कहीं सरकार की नाकामी और सरकार का गैर-जिम्मेदाराना अंदाज फिर से बयान करता है ... अन्ना के द्वारा किये गए अगस्त क्रांति के बाद एका-एक सरकार के प्रति आम जनता का गुस्सा इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर साफ़ तौर पर दिखने लगा है...और जनता के इस गुस्से को भांपते हुए केंद्र सरकार ने मानो अपने छवि सुधारने के बजाये और बिगड़ने की ठान ली हो...अगस्त में जब अन्ना जनलोक-पल मुद्दे को लेकर अनशन पर बैठे थे तब पूरे देश की जनता धीरे धीरे उनके साथ जुड़ रही थी, पर इस बात को गलत भी नहीं ठहराया जा सकता है की उनके इस आन्दोलन को सफल बनाने में कहीं न कहीं सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा...और ये सब जानते है की सोशल नेटवर्किंग साइट्स से अब लगभग हर उम्र के लोग जुड़ चुके है ...और इसके जरिये वो अपनी बात रखते है या फिर अपनी विचारधारा व्यक्त करते है..पर शायद अफसोश इस बात का है की आखिर कल तक विकास की बात करने वाली सरकार को एका एक ये क्या हो गया ? ऐसा क्या हुआ की सरकार को फेसबुक ट्वीटर से इतनी नफरत हो गयी ? जहाँ तक मेरा ख्याल है इन नेताओ ने भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपना एकाउंट बना रखे है....और ये भी अपनी नीतियाँ उसके जरिये बयाँ करते है...पर जब इनकी गलत नीतियाँ या इनके बारे में जनता ने सच लिखना शुरू किया तो अब इनको बुरा लगने लगा ...अगर सरकार को ऐसा लगता है की उसके इस नीति के जरिये उसे कुछ हासिल हो सकता है तो शायद वो गलत है ...क्यूंकि अब जनता जाग चुकी है अब जनता सरकार की मानसिकता को अच्छे से समझ रही है..अगर सरकार को रोक लगाना भी है तो उसको अपने गलत नीतियाँ और सरकार -जनता के बीच आ रही दूरियों के बीच में रोक लगाना चाहिए न की जनता से उनका अधिकार छीनकर उनके अन्दर और भी आग भरे...अब हालात ये हो गए है की सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती और पिछले कुछ दिनों से सरकार, सदन और जनता के बीच घिरती नज़र आ रही है और अगर ऐसे हालात में अगर सरकार का कोई मंत्री ऐसा गैर-जिम्मेदराना बयान देता है तो ये सरकार को ही नुकसान पहुंचाएगा ...आम जनता के स्वतंत्रता पर बेड़ियाँ लगाने की कोशिश करने की बजाए जनता के बीच स्वछ छवि बनाने की कोशिश करे सरकार !!!